साइंटिस्ट ने बनाया ज़ूमइन -आउट होने वाला लेंस

Scientist Innovate A Unbelievable Contact lens ! In Hindi

About Contact lens .

दोस्तों आज साइंस ने कितनी तरक्की कर ली है ,यह आप देख रहे है और यह तरक्की दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। और आज साइंस और टेक के क्षेत्रो में जो इनोवेशन हो रहे है उसकी मानव जाती ने कल्पना भी नहीं की होगी और इसी इनोवेशन से हम इस धरती पर और जीवो की अपेक्षा ज्यादा गुणवत्ता पूर्ण जीवन जी रहे है। 

आज साइंटिस्ट अपने ज्ञान से जो कार्य कर रहे यो किसी चमत्कार से काम नहीं है। वे हमारी प्रॉब्लम सॉल्विंग के ऐसे मैथेड लेकर आते है की वो प्रॉब्लम जड़ से खत्म हो जाती है। और आज  के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे उस इनोवेशन के बारे में  जो हाल ही में इंनोवेट हुआ है और  अगर वो सफल हुआ तो धूम मचा देगा। 


TODAY'S TOPIC  -

आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे -कॉन्टेक्ट लेंस। के बारे में। आजकल यह खबर निकल कर आ रही है की केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिको ने एक ऐसा कॉन्टेक्ट लेने बनाया है जो पलक झपकने पर आखो के देखने की क्षमता को बड़ा सकता है ,यानि - पलक झपकाने से वो लेंस किसी भी वर्ड और थिंग्स को ज़ूम इन और ज़ूम आउट कर सकते है। यानि केवल पलक झपकाकर हम दूर का बड़ी आसानी से देख देख सकते है उन  लगाकर। 


क्या होते है कॉन्टेक्ट लेंस ( What is contact lens )


टैक्ट लैंस (कांटैक्ट  के   नाम  से भी लोकप्रिय) सामान्यतः आंख की कोर्निया (स्वच्छपटल) पर रखा जाने वाला एक सुधारक, प्रसाधनीय या रोगोपचारक लैंस होता है। 1508 में कांटैक्ट लैंसों की पहली कल्पनाओं को समझाने और रेखांकित करने का श्रेय लियोनार्डो दा विंसी को जाता है लेकिन वास्तविक कांटैक्ट लैंसों को बनाने और आंख पर लगाने में 300 वर्षों से भी अधिक लगे। आधुनिक नर्म कांटैक्ट लैंसों का आविष्कार चेक केमिस्ट ओटो विक्टरली और उसके सहायक ड्राह्सलाव लिम ने किया, जिसने उनके उत्पादन के लिये प्रयुक्त जेल का आविष्कार भी किया।यानि इस लेंस को आखो पर लगाने के बाद आपको चस्मा की को ज़रुरत नहीं होती है और यह बहुत आसानी से फिट हो जाते है आखो पर। 
तो एक छोटे  से लेंस को आखो पर लगाने में कुल 300 वर्ष लगे। .तो गाइस कोई भी आविष्कार ऐसे ही नहीं होता है उसके लिए बहुत मेहनत और पैशन की आवश्यकता होती है. 


कॉन्टेक्ट लेंस का इतिहास - (History of contact lens)

लियोनार्डो दा विंसी को अकसर कांटैक्ट लैंसों की कल्पना को प्रस्तुत करने का श्रेय उनकी 1508 में प्रकाशित कोडेक्स ऑफ द आई, मैनुअल डी में करने के लिये दिया जाता है। जिसमें उन्होंने पानी की एक कटोरी में आंख को डुबो कर कोर्निया की ताकत को बदलने का विवरण दिया। लेकिन लियोनार्डो ने यह सलाह नहीं दी कि उनकी इस कल्पना को दृष्टि के सुधार के काम में लाया जाए – उनको तो आंख के समायोजन की प्रक्रिया में अधिक रूचि थी।
रेने डिस्कार्ट्स  ने 1636 में एक और विचार पेश किया, जिसमें द्रव से भरी एक टेस्ट ट्यूब को कोर्निया के सीधे संपर्क में रखा जाता है। इसका उभरा हुआ सिरा दृष्टि को सुधारने के लिये साफ कांच का बना हुआ था– लेकिन यह विचार अव्यावहारिक था क्यौंकि इसके कारण पलक झपकना असंभव था।
1801 में, समायोजन की प्रक्रियाओं से संबंधित प्रयोग करते समय, वैज्ञानिक थामंस यंग ने द्रव से भरे एक आई-कप का निर्माण किया जिसे कांटैक्ट लैंस का पूर्वज समझा जा सकता है। आई-कप के तल पर यंग ने माइक्रस्कोप का एक आईपीस लग दिया। लेकिन लियोनार्डो की तरह यंग का उपकरण भी अपवर्तन के दोषों को सुधारने के लिये नहीं बनाया गया था। सर जान हर्शेल ने एनसाइक्लोपीडिया मेट्रपोलिटाना के 1845 के अंक के फुटनोट में दृष्टि के सुधार के दो उपाय प्रस्तुत किये – पहला, पशु की जेली से भरा कांच का एक गोलाकार कैप्सूल और कोर्निया का एक सांचा, जिसे किसी पारदर्शी माध्यम पर ढाला जा सकता था। हालांकि हर्शेल ने कभी इन विचारों का परीक्षण नहीं किया था, उन्हें बाद में कई स्वतंत्र आविष्कारकों द्वारा आगे बढ़ाया गया जैसे हंगेरियन डॉ॰ डैलास (1929), जिन्होंने जीवित आंखों के सांचे बनाने की एक विधि बनाई। इससे आंख के वास्तविक आकार के अनुकूल लैंसों का पहली बार उत्पादन संभव हुआ।
1887 में एक जर्मन ग्लासब्लोअर, एफ.ई. मुल्लर ने पारदर्शी और सहनयोग्य आंख के पहले आवरण का उत्पादन किया। जर्मन चक्षुविशेषज्ञ अडोल्फ गैस्टान यूजेन फिक ने 1887 में पहले सफल कांटैक्ट लैंस का निर्माण और प्रयोग किया।ज्यूरिच  में काम करते समय, उन्होंने एफोकल स्क्लेरल कांटैक्ट शेलों के निर्माण और प्रयोग के रूप में उन्हें लगाने का विवरण दिया, जो कोर्निया के चारों ओर ऊतक की कम संवेदनशील किनार पर टिक जाते थे – शुरू में खरगोशों पर, फिर अपने आप पर और अंत में स्वयंसेवकों के एक छोटे से समूह पर. ये लैंस भारी ब्लोन कांच से बनाए गए थे और 18-21 मिमी व्यास के थे। फिक ने कोर्निया/कैलासिटी के और कांच के बीच की खाली जगह में डेक्स्ट्रोज घोल भर दिया। उन्होंने अपने कार्य, कांटैक्टब्रिल को एक जर्नल, आर्चीव फर आगेनहीलकुंडे में मार्च 1888 में प्रकाशित किया।
फिक का बनाया लैंस बड़ा और भारी था और एक बार में केवल कुछ ही घंटों के लिये पहना जा सकता था। कील, जर्मनी में आगस्त मुल्लर ने अपनी स्वयं की निकटदृष्टिता को 1888 में खुद के बनाए हुए एक अधिक सुविधाजनक ग्लास-ब्लोन स्क्लेरल कांटैक्ट लैंस से सुधारा.
1887 में ही लुई जे जिरार्ड ने कांटैक्ट लैंस के एक ऐसे ही स्क्लेरल प्रकार का आविष्कार किया। 1930 के दशक तक ग्लास-ब्लोन स्क्लेरल लैंस ही कांटैक्ट लैंस के एकमात्र प्रकार रहे, जब पॉलिमिथाइल मेथाक्रिलेट (पीएमएमए या परस्पेक्स/प्लेक्सीग्लास) का विकास हुआ, जिससे पहली बार प्लास्टिक स्क्लेरल लैंसों का उत्पादन संभव हुआ। 1936 में, आप्टोमेट्रिस्ट विलियम फेनब्लूम ने प्लास्टिक लैंस प्रस्तुत किये, जो अधिक हल्के और सुविधापूर्ण थे। ये लैंस कांच और प्लास्टिक के समागम से बने थे।
1949 में पहले कोर्नियल लैंसों का विकास किया गया। ये लैंस मूल स्क्लेरल लैंसों से काफी छोटे थे, क्यौंकि वे आंख की सारी सतह के बजाय केवल कोर्निया पर लगाए जाते थे और प्रतिदिन सोलह घंटों तक पहने रखे जा सकते थे। उत्पादन की (लेथ) तकनीक में निरंतर सुधार के साथ बेहतर गुणवत्ता वाले लैंस डिजाइनों की उपलब्धि के साथ 1960 के दशक में पीएमएमए कोर्नियल लैंस लोकप्रिय होने वाले पहले कांटैक्ट लैंस थे।
तो दोस्तों यह थी कॉन्टेक्ट लेंस की हिस्ट्री जिससे आपको रूबरू करवाना ज़रूरी था ,और अब हम जानेगे हमारे टॉपिक के बारे में। contect-lenc


आया कांटेक्ट लेंस का नया प्रकार ? जाने -

दोस्तों ऊपर मैंने आपको आज के टॉपिक के बारे में बताया है की आज हम बात करेंगे उन कॉन्टेक्ट लेंस के बारे में जो आखो की पलकों के झपकाने मात्र से हमारी आखो के देखने की क्षमता को बड़ा देते है। लगता की आप समझे नहीं ; मैं समझाता हूँ -केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिको से एक ऐसा लेंस इजाद किया है जो पलक झपकते ही दूर या पास की चीज़ो को स्पस्ट देखा जा सकता है। इसे बायोमेट्रिक लेंस का नाम दिया है ,और अभी इस लेंस का प्रोटोटाइप तैयार किया है।

  • इलैक्ट्रिक -एक्टिव  पॉलिमर फिल्म से किय गए है यह लेंस तैयार 

इनकी है यह -यह खासियते - (Specification of contact lance)


  • इलैक्ट्रिक -एक्टिव  पॉलिमर फिल्म से किय गए है यह लेंस तैयार। 


  • वैज्ञानिको  के अनुसार इससे दूर या पास की चीज़े देखने के बस आखो का मूवमेंट बदलना है। 

  • यह लेंस देखने में सामान्य लेंस की तरह ही  दीखते है। 


  • इसमें ऑर्गनिक उत्तको की जगह इलैक्ट्रिक एक्टिव पॉलिमर  का उपयोग किया है। इसमें खाश किस्म के तर का प्रयोग किया है जो करंट पैदा करते है जो लेने को फैलने और सिकुड़ने में मदद करते है। 



  • दो बार आखो को झपकाने पर दूर और दोबारा ऐसा करने पर पास की वस्तुए साफ़ साफ़ देखी जा सकती है 
  • इंसान और जानवर जिस तरह देखने के लिए जिस टेक्निक का यूज़  करते है इसमें भी उसी का यूज़ किया है। 



  • भविष्य में इसका यूज़ रोबोटिक आई के तोर पर किया जा सकता है। 

  • फ़िलहाल इसे हम तक पहुंचने से पहले कई प्रयोगो से गुज़ारना होगा और इसका काफी वक़्त लगेगा। 

At Conclusion -

दोस्तों आज का यह आर्टिकल कैसा लगा मुझे कमेंट करके ज़रूर बताये ,और इस नए कॉन्टेक्ट लेंस के बारे मे आपका क्या ख्याल है ,क्या यह लोगो की जिंदगी बदलने में कामयाब होगा ,अपनी राइ मुझे ज़रूर बताये। 

उम्मीद करता हु की आपको यह पोस्ट पसंद आयी होगी। गाइस आपका मेरा यह ारिकाल पढ़ने के लिए धन्यवाद और इसको अपने दोस्तों में शेयर भी कर देना जिससे वो भी ऐसी हेल्पफुल नॉलेज को जान सके।


Post a Comment

0 Comments