हिंदी व्याकरण - विराम चिन्ह


             विराम चिन्ह

विराम का शाब्दिक अर्थ है - ठहराव या रुकना। किसी भी भाषा को बोलते पढ़ते या लिखते समय या किसी स्थान को समझाने के लिए अथवा भाऊ को स्पष्ट करने के लिए वाक्य के बीच में या अंत में थोड़ा रुकना होता है और इसी रुकावट का संकेत देने वाले लिखित चिन्ह विराम चिन्ह कहलाते हैं। विराम चिन्ह के प्रयोग से भावों को आसानी से समझा जा सकता है और भाषा में अस्पष्टता आती हैं। यदि उचित स्थान पर इनका प्रयोग न किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। जैसे-रोको, मत जाने दो। रोको मत, जाने दो। हिंदी में कई प्रकार के विराम चिन्ह का प्रयोग किया गया है।–
                              विराम चिन्ह
  • ·अल्पविराम           
    ·प्रश्नवाचक चिह्न          ?
    ·विस्मयादिबोधक              !
    ·योजक चिह्न।               -
    ·निर्देशक चिह्न                    --     
    ·उद्धरण चिह्न               
    ·कोष्ठक चिह्न                 ()


पूर्णविराम – (।) इसका प्रयोग वाक्य पूरा होने पर किया जाता है। जहां प्रश्न पूछा जाता है उसे छोड़कर हर प्रकार की वाक्यों के अंत में इसका उपयोग किया जाता है | जैसे-सु बह का समय था |भारत मेरा देश है।
अर्धविराम- जहा पूर्णविराम से कुछ कम समय रुकना हो वहां अर्धविराम का प्रयोग कियाजाता है इसका विपरीत अर्थ प्रकट करने के लिए किया जाता है । जैसे- भगत सिंह नहीं रहे ;वे
अमर हो गए।


प्रश्नवाचक चिन्ह-   प्रश्नवाचक सूचक चिन्ह का प्रयोग प्रश्नवाचक वाक्य शब्द के अंत में किया जाता
है। कभी-कभी संदेह व्यंग्यात्मक की स्थिति में इसे (के बीच में रखकर भी प्रयोग किया जाता
है। जैसे- क्या तुमने अपना ग्रह कार्य पूरा कर लिया ?

विस्मयादिबोधक चिन्ह खुशी, हर्ष ,दुख, करुणा दया शौक में आदि भावो को प्रकट करने के लिए इस
चिन्ह का प्रयोग किया जाता है-। संबोधन के बाद भी इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे- वहां!
कितना सुंदर पक्षी है। अरे! तुम आ गए।

योजक चिह्न इस प्रकार के चिन्ह का प्रयोग  युग्म शब्दों के मध्य में 2 शब्दों में संबंध स्पष्ट करने
के लिए तथा शब्दों को दोहराएं करने की स्थिति में किया जाता है। जैसे-  पीला- सा। जैसे सभी के
जीवन में सुख- दुख तो आते ही रहते हैं
·
निर्देशक चिन्ह (–-) किसी भी निर्देश सूचना देने वाले वाक्य के बाद यह किसी कथन को उद्धृत करन
या उदाहरण देनी है| किसी का नाम लिखने के लिए इस  चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जैसे-हमारे
देश में अनेक देशभक्त हुए – भगत सिंह ,सुभाष चंद्र बोस,गांधी जी आदि

उद्धरण चिन्ह (“ “) - किसी के कहे कथन यह वाक्य को या किसी रचना के अंशों को ज्यों का त्यों प्रस्तुत करना हो तो कथन के आदि और अंत में इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है|

यह दो प्रकार के होते हैं इकहरे उद्धरण चिन्ह का प्रयोग व्यक्ति विशेष,  ग्रंथ , उपनाम आदि को
प्रकट करने के लिए किया जाता है। जबकि किसी की कही बात को ज्यों की त्यों लिखा जाए तो
दोहरे का प्रयोग किया जाता है। गोदान प्रेमचंद का सुप्रसिद्ध उपन्यास है। सुभाष चंद चंद्र
बोस ने कहा था-   दिल्ली चलो  

विवरण चिह्न -इसका प्रयोग विवरण या उदाहरण देते समय किया जाता है। जैसे-गांधीजी ने तीन बातों
पर बल दिया:- सत्य अहिंसा और प्रेम।

कोष्ठक चिह्न वाक्य के बीच में आए पदों ,शब्दों को पृथक रूप देने के लिए कोष्टक में लिख दिया
जाता है|जैसे - यहां चारों वेदों (साम ,ऋग, अथर्व) की महत्ता बताई गई हैं।


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