हिंदी में कविताये -
- यह पहली पोएम माँ पर है , माता जो हमे अपने जीवन और प्राणो से ज्यादा चाहती है और वो हमारे बचपन से लेकर जवानी तक साथ देती है पर जब हम जवानी की स्टेज में होते है तो हम उसके किये काम और उपकारों को भूलकर उसे बे सहारा एक आश्रम में छोड़ देते है जिसे " वृद्धा आश्रम " कहते है। मुझे यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है की जो माँ हमारे लिए इतना कुछ करती है जीवन के अन्तिंम क्षणों में यह उपहार। बस इसी का मर्म समझाती है यह कविता।इसे धयान से पढ़िए और इस पर अपनी राइ मुझे दीजिये।
माँ ↴
बच्चा जब पैदा होता तो ,
तो कहता सबसे पहले "माँ"
बच्चा जब चलता तो,
सहारा देती माँ.
बच्चा जब पढ़ने जाता।।
तो दुलार करती माँ।
बच्चा जब खाना खाता,
तो प्यार करती माँ
जीवन का एक क्षण न होगा
माँ के बिना।
फिर जब बेटा होता जवान,
क्या फिर मिट जाती है उसकी ज़ुबान?
न करता फिर याद वह माँ को
है रहता फिर उससे अलग.
माँ को चाइए था जब सहारा,
तो उसे छोड़ उसको वृदाश्रम के द्वारा
माँ को चाइए था जब समय ,
तो किया व्यवसाय का बहाना ,
गया भूल वह उस अदभुद क्षणों को,
जब त्याग किया उसके लिए माँ ने ।
जब त्याग किया उसके लिए माँ ने ।
क्या माँ का यही उपहार है,
समाप्त
- मैंने ऊपर की कविता में बताया की हमारे जीवन में माँ का कितना बड़ा हाथ है पर एक इंसान और है जो माँ के जितना ही हमारे जीवन में एहमियत रखता है और वो है " पिता ". पापा हमारे जीवन की ज़रूरी वस्तुओ की पूर्ति करने वाले की तरह नहीं है जो केवल हमारा पालन करता है बल्कि ये वो एहसास है जो ↴जीवन भर हमरे साथ चलता है और हमें अपने जीवन के सुख और दुःख दोनों में सहारा देता है। यह कविता इसी पर है की एक पिता का हमारे जीवन में क्या मोल है और वो किस प्रकार अपने संतान के जीवन में साथ देता है -
मैं दिखता हूं अपनी माँ जैसा,
सब कहते है, सच कहते है।
पर मैं हु अपने पापा का बेटा,
जिसने मुझे कंधेपर बिठाकर,
संसार का मेला दिखाया।
जिसके सहारे चलकर,
मैं आगे बढा।
जब छुटे सारे साथ मेरे,
फिर भी एक हाथ था ,
साथ मेरे।
वह थे मेरे पापा
संसार को किसने बनाया ,
मैं नहीं जानता,
ये दुनिया कितनी बड़ी है,
मैं ये भी नही जानता ,
बस मेरे पापा मेरे पास है ,
मैं इतना ही जनता।
अपने हाथों में सिमटकर ,
अपनी बाहो में लिपटाकर
पूरी दुनिया की सेर कराये ,
ऐसे है मेरे पापा।।
समाप्त
- यह तीसरी कविता बहुत इंस्ट्रिस्टिंग है और यह मेरे मन के भाव को को बया करने के कारन को वयक्त करती है।
मुझे न आती तुकबंदी और ,
न आता लय बनाना ।
कर देता हूं अपने भाव बया ,
लफ़्ज़ों में न सही ,शब्दों में ही सही।
पर क्या करूँ?न रुकते भाव यह मन के,
निकल पडते है दिल को तोड़ के,
पर फिर भी मैने वह सुराख था वापस बनाया पर फिर क्या करूँ भावो की गति है,
इतनीअधिक,
तोड़ के निकल आते है दिल को,
पर अब सीखूगा इनके साथ साथ चलना।
इनके साथ तल से ताल मिलना।
मुझे न आती तुकबन्दी और न आती
लय मिलाना |
2 Comments
good job bro
ReplyDeletekeep it up
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thank you
dhanawad bhai main jyada dino we apna blog nahi dekha hai so Maine apka comment nahi dekha par kya domain name Lena aacha raehga.
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